Radha Kripa Kataksh Stotra in Hindi: राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत अर्थ सहित

भक्ति की दुनिया में अगर कोई सबसे मधुर और प्रेममय स्त्रोत माना जाता है तो वो है “राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र“। ये स्त्रोत राधा रानी की अनंत कृपा और उनके दिव्य कटाक्ष (कृपादृष्टी) को प्राप्त करने का एक अति शक्तिशाली साधन है।

जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण को राधा जी के प्रेम और कृपा के बिना “पूर्ण” नहीं माना जाता, उसी प्रकार एक भक्त की भक्ति भी तभी सफल होती है जब राधा रानी अपनी कटाक्ष देती हैं।

इस स्त्रोत का पाठ करने से भक्त के हृदय में प्रेम, शांति और भगवद अनुराग का प्रकाश होता है। राधा कृपा कटाक्ष अर्थ सहित पाठ करने से हर श्लोक के मधुर भाव को समझने का सुख मिलता है और भक्त को राधा रानी की महिमा और कृपा का गहरा अनुभव होता है।

इस ब्लॉग में हम राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत को श्लोक-दर-श्लोक अर्थ के साथ समझेंगे, इसका इतिहास, रचनाकार, पाठ विधि, लाभ और रहस्य भी जानेंगे। आपको एक स्पष्ट मार्गदर्शन मिलेगा कि कैसे राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत का पाठआपकी भक्ति यात्रा को और भी मधुर और समृद्ध बना सकता है।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत – Radha Kripa Kataksh Stotra Lyrics

मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी, प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी।
व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (1)

अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते, प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङि्घ् कोमले।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (2)

अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां, सुविभ्रम ससम्भ्रम दृगन्तबाणपातनैः।
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (3)

तड़ित्सुवणचम्पक प्रदीप्तगौरविगहे, मुखप्रभापरास्त-कोटिशारदेन्दुमण्ङले।
विचित्रचित्र-संचरच्चकोरशावलोचने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (4)

मदोन्मदातियौवने प्रमोद मानमणि्ते, प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपणि्डते।
अनन्यधन्यकुंजराज कामकेलिकोविदे कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (5)

अशेषहावभाव धीरहीर हार भूषिते, प्रभूतशातकुम्भकुम्भ कुमि्भकुम्भसुस्तनी।
प्रशस्तमंदहास्यचूणपूणसौख्यसागरे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (6)

मृणालबालवल्लरी तरंगरंगदोलते, लतागलास्यलोलनील लोचनावलोकने।
ललल्लुलमि्लन्मनोज्ञ मुग्ध मोहनाश्रये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (7)

सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेखकम्बुकण्ठगे, त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्तिदीधिअति।
सलोलनीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (8)

नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण, प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।
करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥ (9)

अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्, समाजराजहंसवंश निक्वणातिग।
विलोलहेमवल्लरी विडमि्बचारूचं कमे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (10)

अनन्तकोटिविष्णुलोक नमपदमजाचिते, हिमादिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।
अपारसिदिवृदिदिग्ध -सत्पदांगुलीनखे, कदा करिष्यसीह मां कृपा -कटाक्ष भाजनम्॥ (11)

मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी, त्रिवेदभारतीयश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी, ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥ (12)

इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुननि्दनी, करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।
भवेत्तादैव संचित-त्रिरूपकमनाशनं, लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डलप्रवेशनम्॥ (13)

॥ इति श्रीमदूर्ध्वाम्नाये श्रीराधिकायाः कृपाकटाक्षस्तोत्रं सम्पूर्णम ॥

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत अर्थ सहित (श्लोक-दर-श्लोक)

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत को बोलने से पहले श्री राधा का स्मरण करना ज़रूरी है, इस मंत्र के द्वारा आप श्री राधा का स्मरण कर सकते है –

श्लोक 1

|| राधा साध्यम साधनं यस्य राधा, मंत्रो राधा मंत्र दात्री च राधा
सर्वं राधा जीवनम यस्य राधा, राधा राधा वाची किम तस्य शेषम ||

अर्थ – राधा साध्य है उनको पाने का साधन भी राधा नाम ही है, मंत्र भी राधा है और मन्त्र देने वाली गुरु भी स्वयं राधा जी ही है। सब कुछ राधा नाम में ही समाया हुआ है। और सबका जीवन प्राण भी राधा ही है। राधा नाम के अतिरिक्त ब्रम्हांड में शेष बचता क्या है? राधा राधा राधा राधा राधा।

श्लोक 2

मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी, प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी।
व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

भावार्थ – हे राधारानी! आप मुनियों द्वारा पूजी जाने वाली हैं, तीनों लोकों का दुख हरने वाली हैं। आपका मुख कमल जैसा सुंदर और प्रसन्न है। आप निकुंजों में श्रीकृष्ण के साथ विहार करती हैं। आप वृषभानु महाराज की पुत्री और नन्दबाबा की बहू हैं। हे राधे! कब आप मुझ पर अपनी दया की दृष्टि डालेंगी?

श्लोक 3

अशोकवृक्ष वल्लरी वितानमण्डपस्थिते, प्रवालज्वालपल्लव प्रभारूणाङ्घ्रिकौमले।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

भावार्थ – हे राधे! आप अशोक वृक्ष की छाया में बने निकुंज-मंडप में रहती हैं। आपके चरण लाल कमल जैसे कोमल हैं। आपके हाथ आशीर्वाद देने वाले हैं और आप अपार सम्पत्तियों की देवी हैं। हे मातेश्वरी! कब आपकी कृपा दृष्टि मुझ पर पड़ेगी?

श्लोक 4

अनंगरंगमंगल प्रसंगभंगुरभ्रुवां, सुविभ्रमससम्भ्रम दृगन्तबाणपातनैः।
निरन्तरं वशीकृत प्रतीतनन्दनन्दने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

भावार्थ – हे राधारानी! आपकी भौंहों की चंचलता कामदेव के भी प्रभाव को तोड़ देती है। आपकी आँखों के कटाक्ष बाणों से श्रीकृष्ण सदा मोहित और वश में रहते हैं। हे करुणामयी! कब आप मुझे भी उस कृपा दृष्टि का भाग्यशाली बनाएंगी?

श्लोक 5

तड़ित्सुवणचम्पक प्रदीप्तगौरविगहे, मुखप्रभापरास्त-कोटिशारदेन्दुमण्डले।
विचित्रचित्रसंचरच्चकोरशावलोचने, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

भावार्थ – हे राधे! आपका रंग बिजली की रौशनी, सोना और चाँदी से भी ज्यादा सुंदर है। आपके मुख की ज्योति करोड़ों शरद-पूर्णिमा के चाँद को भी मात देती है। आपकी आँखें चकोर पक्षी जैसी आकर्षक और मोहक हैं। हे श्रीराधे! कब आप मुझे अपने कृपादृष्टि का पात्र बनाएंगी?

श्लोक 6

मदोन्मदातियौवने प्रमोदमानमण्डिते, प्रियानुरागरंजिते कलाविलासपण्डिते।
अनन्यधन्यकुञ्जराज कामकेलिकोविदे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

भावार्थ – हे राधे! आप यौवन से पूर्ण शोभित हैं, हर्ष और मान से अलंकृत हैं, और श्रीकृष्ण के प्रेम से सराबोर हैं। आप सभी कलाओं में निपुण हैं और निकुंज-वनों की प्रेम क्रीड़ाओं में पारंगत हैं। हे राधिका सुंदरी! कब आपकी करुणा मुझे भी प्राप्त होगी?

श्लोक 7

अशेषहावभाव धीरहीरहारभूषिते, प्रभूतशातकुम्भकुम्भकुम्भकुम्भसुस्तनी।
प्रशस्तमन्दहास्यचूर्णपूर्णसौख्यसागरे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

भावार्थ – आपके हावभाव अनगिनत और बहुत ही मोहक हैं। आप रत्नों और आभूषणों से शोभित हैं। आपके वक्षस्थल सौंदर्य से भरे हुए हैं। आपकी मंद-मंद मुस्कान सुख का अथाह सागर है। हे राधे! कब आप अपनी कृपा दृष्टि का मुझे आनंद देंगी?

श्लोक 8

मृणालबालवल्लरी तरंगरंगदोलते, लतागलास्यलोलनीललोचनावलोकने।
ललल्लुलमिलन्मनोज्ञमुग्धमोहनाश्रये, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

भावार्थ – हे राधे! आपके अंग मृणाल (कमल की डंडी) जैसे कोमल हैं। आपकी यौवन-तरंगें लता की तरह झूमती हैं। आपकी दृष्टि नीले कमल जैसी चंचल है। आप अनोखे सौंदर्य और मोहकता की शरण हैं। हे करुणामयी! कब आप अपनी कृपा भरी नजर मेरी ओर डालेंगी?

श्लोक 9

सुवर्ण्मालिकांचिते त्रिरेखकम्बुकण्ठगे, त्रिसुत्रमंगलीगुण त्रिरत्नदीप्तिदीधिअति।
सलोलनीलकुन्तले प्रसूनगुच्छगुम्फिते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष भाजनम्॥

भावार्थ – हे राधे! आपके गले में सुनहरी माला और तीन सुंदर रेखाएँ सुशोभित हैं। मंगलसूत्र और रत्नों की आभा से आपका कण्ठ चमकता है। आपके लहराते नीले केश पुष्पगुच्छों से अलंकृत रहते हैं। हे देवी! कब आपकी करुणा दृष्टि मुझ पर पड़ेगी?

श्लोक 10

नितम्बबिम्बलम्बमान पुष्पमेखलागुण, प्रशस्तरत्नकिंकणी कलापमध्यमंजुले।
करीन्द्रशुण्डदण्डिका वरोहसोभगोरुके, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

भावार्थ – हे राधारानी! आपकी कमर पुष्पमेखला और घुँघरूओं से सुशोभित है। आपके मधुर वक्र (कटि) और सुंदर जंघाएँ हाथी की सूँड जैसी मनोहर और मज़बूत हैं। हे सुंदरी! कब मैं आपकी कृपा का भाग्यशाली बनूँगी?

श्लोक 11

अनेकमन्त्रनादमंजु नूपुरारवस्खलत्, समाजराजहंसवंश निक्वणातिग।
विलोलहेमवल्लरी विडमिबचारूचं कमे, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥

भावार्थ – आपके चरणों के नूपुर मधुर ध्वनि करते हैं, जिनकी झंकार से हंसों के झुंड भी पीछे छूट जाते हैं। आपके चलने का लावण्य सोने की लता के समान डोलता है। हे राधे! कब आपकी वह मधुरता मुझ पर कृपा बनकर बरसेगी?

श्लोक 12

अनन्तकोटिविष्णुलोक नमपदमजाचिते, हिमादिजा पुलोमजा-विरंचिजावरप्रदे।
अपारसिदिवृदिदिग्ध सत्पदांगुलीनखे, कदा करिष्यसीह मां कृपा कटाक्ष भाजनम्॥

भावार्थ – हे राधे! अनंत विष्णुलोक आपकी चरणरज को प्रणाम करते हैं। आप हिमालय की पुत्री पार्वती, इन्द्राणी और ब्रह्माणी को भी वर देने वाली हैं। आपके चरण नखों से अपार चाँदनी सी शीतल ज्योति फैलती है। हे जगज्जननी! कब आप अपनी कृपा दृष्टि मुझ पर करेंगी?

श्लोक 13

मखेश्वरी क्रियेश्वरी स्वधेश्वरी सुरेश्वरी, त्रिवेदभारतीयश्वरी प्रमाणशासनेश्वरी।
रमेश्वरी क्षमेश्वरी प्रमोदकाननेश्वरी, ब्रजेश्वरी ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोस्तुते॥

भावार्थ – हे राधारानी! आप सभी यज्ञों की अधिष्ठात्री हैं, सभी क्रियाओं और देवताओं की स्वामिनी हैं। आप तीनों वेदों का आधार हैं और धर्म-शास्त्र की अधीश्वरी हैं। आप लक्ष्मी, क्षमा और प्रमोद-वनों की देवी हैं। आप ब्रज की अधीश्वरी हैं, श्रीकृष्ण की प्रियतम हैं। हे राधे! आपको मेरा प्रणाम है।

श्लोक 14

इतीदमतभुतस्तवं निशम्य भानुनन्दिनी, करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम्।
भवेत्तादैव संचित-त्रिरूपकमनाशनं, लभेत्तादब्रजेन्द्रसूनु मण्डलप्रवेशनम्॥

भावार्थ – हे वृषभानुनन्दिनी! इस अद्भुत स्त्रोत को सुनकर कृपया आप साधक को सदैव अपनी कृपा दृष्टि का पात्र बनाएँ। इससे जीव के तीनों प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे नन्दनन्दन श्रीकृष्ण के निकुंज-मंडल में प्रवेश का अवसर मिलता है।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत की रचना और महत्वत्ता

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत की रचना श्री कृपालुजी महाराज (कुछ विद्वान श्री हित हरिवंश महाप्रभु को भी इसका रचयिता मानते हैं) द्वारा की गयी है। यह एक अद्भुत स्त्रोत है, जिसमें राधा रानी के दिव्य चरित्र और उनके कृपादृष्टि का वर्णन है।

रचनाकार ने अपनी भक्ति और प्रेम के श्लोकों में पीरो कर ऐसे मधुर स्त्रोत का निर्माण किया है जिसमें भक्त के हृदय से राधा रानी के प्रति निर्मल प्रार्थना निकलती है।

मूल उद्देश्य

राधा रानी की कृपा कटाक्ष पाना, क्योंकि बिना उनके कृपा के भक्त ना तो कृष्ण भक्ति में प्रगति कर सकते हैं, ना ही भव-सिंधु को पार कर सकते हैं।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत

भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं कि “जो मुझे प्राप्त करना चाहता है, उसे पहले राधा रानी को प्रसन्न करना होगा।” इसलिए राधा जी को “आदि शक्ति की भक्ति” और “प्रेम की मूर्ति” कहा जाता है।

महत्त्व

  1. भक्ति की जीवन रेखा – ये स्त्रोत भक्त के हृदय में अनन्य प्रेम जगाता है और राधा रानी के चरण कमल से जुड़ता है।
  2. दिव्य कृपा का द्वार – राधा जी के कटाक्ष के बिना कृष्ण भक्ति अधूरी है। क्या स्त्रोत के पाठ से राधा जी की कृपा प्राप्त होती है।
  3. मोक्ष और आनंद का साधन – ये केवल भक्ति के मार्ग पर ही नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध कर मोक्ष और परम-आनंद की ओर ले जाता है।
  4. वृन्दावन रस की झाँकी – इस स्त्रोत का पाठ करते समय ऐसा अनुभव होता है जैसे हम वृन्दावन की रसमयी भूमि में राधा-कृष्ण के मधुर विलास के दर्शन कर रहे हैं।

इस स्त्रोत का पाठ हर युग में संत, महंत और भक्तों ने अपनी भक्ति की शक्ति को बढ़ाने के लिए किया है। ये स्त्रोत एक ऐसा अमृत-स्रोत है जो भक्त के हृदय को दिव्य प्रेम और अनंत शांति से भर देता है।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत पाठ का सही पूजा विधि

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत का पाठ एक भक्ति-पूर्ण अनुष्ठान है। इसे करने के लिए कोई नियम है या बड़े यज्ञ की आवश्यकता नहीं है, बाल्कि श्रद्धा, प्रेम और शुद्ध भाव ही असली शक्ति है। फिर भी, कुछ विधि-विधान का पालन करने से पहले और भी फलदायी होता है:-

1. शुभ समय

  • स्त्रोत का पाठ प्रातः काल या संध्या समय करना उत्तम माना गया है।
  • राधा अष्टमी, शरद पूर्णिमा, जन्माष्टमी जैसे पवित्र दिनों पर इसका पाठ विशेष फल देता है।

2. पाठ से पहले तयारी

  • स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहचानें।
  • एक शांत और पवित्र स्थल पर बैठ-कर पाठ करें, जहां राधा-कृष्ण का चित्र या विग्रह स्थापित हो।
  • आसन पर बैठने से पाठ में स्थिरता आती है, इसलिए साफ़ आसन या कपड़े का प्रयोग करना चाहिए।

3. संकल्प

  • पाठ शुरू करने से पहले राधा रानी के चरण कमल को प्रणाम करके उनकी कृपा के लिए संकल्प करें।
  • संकल्प का अर्थ है – मन में ये दृढ भाव लाना कि “मैं राधा रानी की कृपा प्राप्त करने के लिए इस स्त्रोत का पाठ कर रहा/रही हूं।”

4. पाठ विधि

  • राधा-कृष्ण के सामने दीपक, धूप, फूल और तुलसी अर्पित करें।
  • का उच्चारण करके, राधा रानी का ध्यान करें और फिर स्त्रोत का पाठ शुरू करें।
  • हर श्लोक को स्पष्ट उच्चारण के साथ प्रेम और श्रद्धा भाव से गाएं या पढ़ें।
  • पाठ के समय मन में राधा रानी के दिव्य चरण कमल की कल्पना करनी चाहिए।

5. पाठ के बाद

  • स्त्रोत समाप्त होने के बाद राधा रानी को प्रणाम करें और उनकी कृपा के लिए कीर्तन या नाम-स्मरण करें।
  • तुलसी दल, माखन-मिश्री या छोटी सी भोग सामग्री राधा-कृष्ण को अर्पित करके प्रसादम के रूप में ग्रहण करें।

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राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत पाठ के लाभ

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ सिर्फ एक स्तोत्र पाठ नहीं, बल्कि भक्ति का एक दिव्य साधना है। जो भक्त इस प्रेम और श्रद्धा के साथ कर्ता है, उसके जीवन में अनेक ऐसी कृपा प्राप्त होती हैं जो सामान्य रूप से संभव नहीं होती।

1. राधा रानी का कृपा कटाक्ष

क्या स्तोत्र का सबसे बड़ा लाभ है राधा जी का कृपा कटाक्ष। जब राधा रानी अपनी कृपादृष्टि देती हैं, तो भक्त के जीवन से दुख, अशुभ गृह-दोष और मानसिक चिंता दूर होने लगती है।

2. कृष्ण भक्ति में प्रगति

राधा जी बिना कृष्ण भक्ति अधूरी है। ये स्तोत्र भक्त को राधा रानी से जोड़ता है और उनके माध्यम से कृष्ण भक्ति की उन्नति होती है।

3. मन को शांति और हृदय में प्रेम

पाठ के दौरन और उसके बाद भक्त को अनुभव होता है कि मन एकदुम शांत हो गया है, और हृदय में राधा-कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम उमड़ता है।

4. आर्थिक और पारिवारिक समस्याओं का समाधान

काई भक्तों का अनुभव है कि इस स्तोत्र के नित्य पाठ से जीवन की कथाएं, अर्थिक संकट और पारिवारिक अशांति धीरे-धीरे दूर हो जाती हैं।

5. मनोकामना पूर्ति

जो भक्त निष्ठा से इस स्तोत्र का पाठ करता है, राधा रानी उसकी सच्ची और पवित्र मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं।

6. आत्मशुद्धि और मोक्ष मार्ग

इस स्तोत्र का पाठ आत्मा को पवित्र बनाता है और उसे सांसारिक बंधनों से ऊपर उठाकर मोक्ष की ओर ले जाता है।

7. आनंद रस का अनुभव

ये स्तोत्र भक्त को वृन्दावन के प्रेम रस का अनुभव कराता है। जब पाठ भावपूर्ण होता है, तो भक्त को ऐसा लगता है जैसे वो राधा-कृष्ण के मधुर लीला दर्शन कर रहा है। सरल भाषा में कहे तो, राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र एक ऐसा अमृत है जो भक्त के जीवन को प्रेम, शांति, समृद्धि और अनंत कृपा से भर देता है।

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राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत पाठ करने के नियम

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ भक्ति और श्रद्धा का कार्य है। यदि कुछ सरल नियम अपनाए जाएं, तो पाठ और भी फलदाई होती है और भक्त को राधा रानी की कृपा जल्दी प्राप्त होती है।

1. शुद्ध भाव सबसे जरूरी

  • पाठ करते समय मन में राधा जी के चरण कमल की भक्ति और प्रेम हो।
  • बिना भाव के किया गया पाठ केवल शब्द उच्चरण बन जाता है, लेकिन प्रेम से किया गया पाठ राधा रानी को प्रसन्न करता है।

2. नित्य पाठ का महत्व

  • इस स्तोत्र का नित्य पाठ करना उत्तम है।
  • अगर नित्य पाठ संभव न हो तो काम से काम राधा अष्टमी, पूर्णिमा, जन्माष्टमी या सोमवार के दिन पाठ करें।

3. उच्चारण की शुद्धता

  • स्तोत्र संस्कृत में है, इसलिए उच्चारन को जितना हो सके शुद्ध और स्पष्ट रखने की कोशिश करें।
  • अगर संस्कृत काठिन लगे तो अर्थ/भावार्थ समझ कर पाठ करें, क्योंकि भाव सबसे महत्वपूर्ण है।

4. पवित्रता का ध्यान

  • पाठ से पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहचानें।
  • पाठ एक पवित्र स्थल पर करें जहां राधा-कृष्ण का चित्र या विग्रह स्थापित हो।

5. आसन

  • पाठ  करते समय एक स्थिर आसन पर बैठना चाहिए।
  • पाठ  करते समय लापरवाही, जल्दबाजी-खेलते या अन्यथा काम करते हुए पाठ न करें।

6. भोग और अर्पण

  • पाठ के बाद राधा-कृष्ण को कुछ फूल, तुलसी पत्र, मिश्री या माखन अर्पित करें।
  • ये प्रसाद भक्ति का प्रतीक है, जो भक्त को अधिक दिव्य आनंद देता है।

7. निष्कपात भक्ति

  • सबसे बड़ा नियम है कि पाठ  निष्कपट और निष्काम भक्ति से करें।
  • मनोकामना पूर्ति स्वत: ही राधा रानी की कृपा से हो जाएगी, लेकिन मुख्य उद्देश्य सिर्फ उनका प्रेम और आशीर्वाद प्राप्त करना हो।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत का रहस्य

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र सिर्फ एक काव्य या प्रार्थना नहीं, बल्कि एक अदभुत रहस्य अपने अंदर समाए हुए हैं। क्या स्तोत्र के हर श्लोक में राधा रानी की दिव्य शक्ति, उनका प्रेम और उनकी दया का दर्शन होता है।

राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत

1. राधा रानी के कटाक्ष का रहस्य

कटाक्ष” का अर्थ है – आँखों के कोने से दीया एक दिव्य दृष्टि। राधा जी का एक कृपापूर्ण कटाक्ष भी भक्त के जीवन का अंधकार मिटाकर प्रेम और भक्ति से भरा हुआ बना देता है। ये स्तोत्र इसी कृपा कटाक्ष को प्राप्त करने का साधन है।

2. राधा ही भक्ति का द्वार

भक्ति शास्त्र के अनुसार, कृष्ण को प्रकट करने के लिए पहले राधा जी को प्रसन्न करना आवश्यक है। उनकी कृपा के बिना कृष्ण दर्शन भी संभव है। इस स्तोत्र का रहस्य ये है कि ये हमें श्री राधा से जोड़कर श्री कृष्ण तक का रास्ता दिखता है।

3. प्रेम रस का मूल

क्या स्तोत्र का हर श्लोक प्रेम और माधुर्य से भरा है। भक्त जब इसे श्रद्धा से पढ़ता है तो उसके हृदय में वृन्दावन का प्रेम रस अपने आप फूटने लगता है।

4. जीवन का रूपान्तर

क्या स्तोत्र का एक और रहस्य है, ये भक्त के अंतरिक्ष जीवन को बदल देता है। पाठ करते करते व्यक्ति के अंदर से अहंकार, लोभ और चिंता दूर होने लगती है, और उनकी जगह विनम्रता, प्रेम और संतोष आ जाता है।

5. अलौकिक अनुभव

काई भक्तों ने अनुभव किया है कि स्तोत्र पाठ के दौरन या बाद में उन्हें एक अलौकिक शांति, प्रेम की लहर और राधा रानी की उपस्थिति का एहसास होता है।

इसलिए, राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र का रहस्य ये है कि ये भक्त के हृदय को राधा रानी से सीधा जोड़ देता है। जिस पर राधा जी कृपा करती हैं, उसका जीवन दिव्य आनंद और कृष्ण भक्ति से परिपूर्ण हो जाता है।

भक्तों का अनुभव और भक्ति में स्त्रोत की भूमिका

श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ सिर्फ ग्रंथों में नहीं, बल्कि जीवित भक्तों के अनुभव में भी अपना प्रभाव दिखता है। हर एक भक्त ने इस स्तोत्र के माध्यम से राधा रानी की कृपा को अपने जीवन में महसूस किया है। यहां कुछ भक्तों के अनुभव दिए जा रहे हैं:

भक्तों के अनुभव

1. श्रीमती. कविता शर्मा (दिल्ली):

“मैं कई सालों से मानसिक अशांति और पारिवारिक तनाव से गुजर रही थी। जब मेरे गुरुजी ने मुझे राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र पाठ करने की सलाह दी, तब से मेरी जिंदगी बदल गई। नित्य पाठ से मन शांत हुआ और घर में प्रेम और समृद्धि बढ़ने लगी। ये स्तोत्र मेरे लिए जीवन का आधार बन गया है।”

2. राजेश गुप्ता (जयपुर):

“पहले मैं केवल कृष्ण भजन करता था, लेकिन मुझे अंदर से पूर्णता का अनुभव नहीं होता था। जब मैंने राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र पाठ करना शुरू किया, तब मुझे समझ आया कि बिना राधा जी की कृष्ण भक्ति अधूरी है। अब मैं जब भी पाठ करता हूं तो लगता है जैसे वृन्दावन की गलियों में राधा-कृष्ण के दर्शन कर रहा हूँ।”

3. मीरा जोशी (वाराणसी):

“मैं एक शिक्षिका हूं और मेरा जीवन हमेशा अर्थिक समस्याओं से घिरा रहा। राधा जी के इस स्तोत्र का पाठ करने से मुझे ऐसा लगता है जैसे एक दिव्य शक्ति मुझे संभाल रही है। आज मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर गई है और मन हमेशा प्रसन्न रहता है।”

4. अनिल वर्मा (लखनऊ):

“राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र पाठ करने के दौरान मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे राधा रानी अपनी दिव्य कटाक्ष से मुझे देख रही हैं। मेरे लिए ये स्तोत्र एक जीवंत अनुभव है, जो हर दिन मुझे कृष्ण भक्ति में और गहरा ले जाता है।”

भक्ति में स्तोत्र की भूमिका

  • मनुष्य को शुद्ध और शांत बनता है।
  • राधा जी से जोड़ कर कृष्ण भक्ति में उन्नति देता है।
  • भक्तों को जीवन में प्रेम, दया और संतोष की शक्ति देता है।
  • दुःख-सुख में एक दिव्य सहारा प्रदान करता है।
  • अनुभव से साफ है कि राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र केवल पाठ करने की विधि नहीं, बालकों के जीवन में एक जीवंत कृपा का स्रोत है।

निष्कर्ष

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र भक्ति की एक अनमोल धन है जिसमें राधा रानी का अनंत प्रेम, दया और कृपा समाये हुए हैं। हर श्लोक भक्त के हृदय में मधुर प्रेम रस भर देता है और उसे राधा जी के चरण कमल से जोड़ देता है।

इस स्तोत्र की महत्ता इस बात में है कि बिना राधा जी की कृपा के कृष्ण भक्ति पूरी नहीं होती। जो भक्त निष्ठा, प्रेम और श्रद्धा से इसका पाठ करता है, उसके जीवन में शांति, प्रेम, समृद्धि और अनंत आनंद प्रवेश करता है।

पाठ की विधि, नियम और रहस्य के माध्यम से हमने देखा कि ये स्तोत्र एक सरल है लेकिन अति शक्तिशाली मार्ग है जो भक्त को वृन्दावन के प्रेम रस तक ले जाता है। अनुभव से भी ये प्रमाणित होता है कि राधा जी की कृपा भक्तों के जीवन को बदल कर दिव्य भक्ति और प्रेम से भर देती है।

इसलिए, अगर आप भी अपने जीवन में प्रेम, कृपा और भक्ति का अनुभव करना चाहते हैं, तो नित्य प्रेम और श्रद्धा के साथ राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र का पाठ अवश्य कीजिए।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र बनाया?
इसकी रचना श्री कृपालु जी महाराज के द्वार की गई मानी जाती है, लेकिन कुछ विद्वान इसे श्री हित हरिवंश महाप्रभु से भी जोड़ते हैं।
यह स्तोत्र केवल संस्कृत में क्या आवश्यक है?
नहीं, अगर संस्कृत काठिन लगे तो आप इसे हिंदी अर्थ/भावार्थ समझकर भी पढ़ सकते हैं। भाव ही सबसे महत्वपूर्ण है।
इस स्तोत्र का पाठ कब करना सबसे शुभ है?
प्रातः काल और संध्या समय सबसे उत्तम है। साथ ही, राधा अष्टमी, शरद पूर्णिमा, जन्माष्टमी जैसी तिथियों पर इसका पाठ विशेष फल देता है।
बिना गुरु के कौन सा स्तोत्र पाठ किया जा सकता है?
हां, कोई भी भक्त प्रेम और श्रद्धा से इसका पाठ कर सकता है। लेकिन अगर गुरु मार्गदर्शन दें तो और भी अधिक फल मिलता है।
स्तोत्र पाठ के साथ क्या विशेष सामग्री की आवश्यकता है?
नहीं, केवल शुद्ध भाव और प्रेम ही जरूरी है। फिर भी राधा-कृष्ण का चित्र, धूप, दीप और फूल अर्पित करना शुभ मन जाता है।
इस स्तोत्र से कौन सी भावनाएं पूरी होती हैं?
हां, राधा रानी की कृपा कटाक्ष से भक्त की पवित्र मनोकामनाएं पूरी होती हैं, प्रेम के साथ ही जीवन में शांति और समृद्धि भी मिलती है।
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