Shri Vindhyeshwari Chalisa - श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा देवी विन्ध्येश्वरी माँ को समर्पित एक प्रसिद्ध भक्ति ग्रंथ है, जिसमें 40 श्लोकों में माँ की महिमा का वर्णन किया गया है। विन्ध्येश्वरी देवी विंध्य पर्वत की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिनके स्वरूप को शक्तिशाली, करुणामयी और संहारक, तीनों रूपों में पूजा जाता है।

इन्हें शक्ति और रक्षा की देवी माना जाता है जो अपने भक्तों के कष्टों का निवारण करती हैं और उन्हें मानसिक शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करती हैं।

विन्ध्येश्वरी चालीसा माँ के विभिन्न रूपों, भक्तों के प्रति उनकी अद्भुत शक्ति, दया और करुणा का विस्तार से वर्णन करती है। विन्ध्येश्वरी माँ के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करते हुए, इसका पाठ करने से न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है, बल्कि जीवन की बाधाएँ भी दूर होती हैं।

विन्ध्येश्वरी चालीसा विशेष रूप से उन भक्तों के लिए अत्यंत लाभकारी मानी जाती है जो शक्ति प्राप्ति, संकट से मुक्ति या अपने परिवार की रक्षा के लिए माँ की पूजा करते हैं। इस चालीसा का नियमित पाठ मनोबल और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है, इसलिए भक्ति जीवन में श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

श्री विन्ध्येश्वरी माता का परिचय – Introduction to Shri Vindhyeshwari Chalisa

विन्ध्येश्वरी माता को विंध्यवासिनी देवी के नाम से भी जाना जाता है। ये माँ दुर्गा का एक अति शक्तिशाली रूप है जो यू.पी. के मिर्ज़ापुर के विंध्याचल पर्वत पर स्थित है। माँ को “विंध्य की रानी” भी कहा जाता है क्योंकि उनका स्थान विंध्य पर्वत शृंखला के बीच स्थापित है। पुराणों के अनुसार, माँ विंध्यवासिनी ने असुर महिषासुर और शुंभ-निशुंभ का संघार (विनाश) करके देवताओं और पृथ्वी को उनके अत्याचार से बचाया था। इसी वजह से उनकी गिनती “नवदुर्गा” में होती है। 

माँ का रूप बहुत ही दिव्य और शांत है। उनके हाथ में शंख, चक्र, गदा और पद्मा (पवित्र कमल पुष्प का नाम है, जो सुंदरता, पवित्रता और विकास का प्रतीक है) होते हैं जो शक्ति, धैर्य, ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक है। माँ विन्ध्येश्वरी अपने भक्तों के सर्व दुख को दूर करने वाली और इच्छा पूरी करने वाली देवी के रूप में प्रसिद्घ हैं।

उनका मुख्य मंदिर विंध्याचल धाम में है, जहां हर साल नवरात्रि में लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं। ये धाम भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। भक्तों की श्रद्धा है कि जो व्यक्ति माँ का स्मरण करता है और उनका चालीसा या मंत्र पथ करता है, उसकी सारी रुकावटें दूर हो जाती हैं और उसके जीवन में सफलता, शांति और सुख आता है।

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा – Shri Vindheyshwari Chalisa

॥ दोहा ॥

नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब ।

सन्त जनों के काज में, करती नहीं विलम्ब ॥

विन्ध्येश्वरी चालीसा चौपाई

जय जय जय विन्ध्याचल रानी।

आदिशक्ति जगविदित भवानी ॥

सिंहवाहिनी जै जगमाता ।

जै जै जै त्रिभुवन सुखदाता ॥

कष्ट निवारण जै जगदेवी ।

जै जै सन्त असुर सुर सेवी ॥

महिमा अमित अपार तुम्हारी ।

शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥

दीनन को दु:ख हरत भवानी ।

नहिं देखो तुम सम कोउ दानी ॥

सब कर मनसा पुरवत माता ।

महिमा अमित जगत विख्याता ॥

जो जन ध्यान तुम्हारो लावै ।

सो तुरतहि वांछित फल पावै ॥

तुम्हीं वैष्णवी तुम्हीं रुद्रानी ।

तुम्हीं शारदा अरु ब्रह्मानी ॥

रमा राधिका श्यामा काली ।

तुम्हीं मातु सन्तन प्रतिपाली ॥

उमा माध्वी चण्डी ज्वाला ।

वेगि मोहि पर होहु दयाला ॥ 

तुम्हीं हिंगलाज महारानी ।

तुम्हीं शीतला अरु विज्ञानी ॥

दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता ।

तुम्हीं लक्ष्मी जग सुख दाता ॥

तुम्हीं जाह्नवी अरु रुद्रानी ।

हे मावती अम्ब निर्वानी ॥

अष्टभुजी वाराहिनि देवा ।

करत विष्णु शिव जाकर सेवा ॥

चौंसट्ठी देवी कल्यानी ।

गौरि मंगला सब गुनखानी ॥

पाटन मुम्बादन्त कुमारी ।

भाद्रिकालि सुनि विनय हमारी ॥

बज्रधारिणी शोक नाशिनी ।

आयु रक्षिनी विन्ध्यवासिनी ॥

जया और विजया वैताली ।

मातु सुगन्धा अरु विकराली ॥

नाम अनन्त तुम्हारि भवानी ।

वरनै किमि मानुष अज्ञानी ॥

जापर कृपा मातु तब होई ।

जो वह करै चाहे मन जोई ॥ 

कृपा करहु मोपर महारानी ।

सिद्ध करहु अम्बे मम बानी ॥

जो नर धरै मातु कर ध्याना ।

ताकर सदा होय कल्याना ॥

विपति ताहि सपनेहु नाहिं आवै ।

जो देवीकर जाप करावै ॥

जो नर कहँ ऋण होय अपारा ।

सो नर पाठ करै शत बारा ॥

निश्चय ऋण मोचन होई जाई ।

जो नर पाठ करै चित लाई ॥

अस्तुति जो नर पढ़े पढ़अवे ।

या जग में सो बहु सुख पावे ॥

जाको व्याधि सतावे भाई ।

जाप करत सब दूर पराई ॥

जो नर अति बन्दी महँ होई ।

बार हजार पाठ करि सोई ॥

निश्चय बन्दी ते छुट जाई ।

सत्य वचन मम मानहु भाई ॥

जापर जो कछु संकट होई ।

निश्चय देविहिं सुमिरै सोई ॥ 

जा कहँ पुत्र होय नहिं भाई ।

सो नर या विधि करे उपाई ॥

पाँच वर्ष जो पाठ करावै ।

नौरातन महँ विप्र जिमावै ॥

निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी ।

पुत्र देहिं ता कहँ गुणखानी ॥

ध्वजा नारियल आन चढ़ावै ।

विधि समेत पूजन करवावै ॥

नित प्रति पाठ करै मन लाई ।

प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥

यह श्री विन्ध्याचल चालीसा ।

रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥

यह जन अचरज मानहु भाई ।

कृपा दृश्टि जापर होइ जाई ॥

जै जै जै जग मातु भवानी ।

कृपा करहु मोहि निज जन जानी ॥

॥ इति श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा समाप्त ॥

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा का महत्त्व – Importance of Shri Vindhyeshwari Chalisa

श्री विन्ध्येश्वरी माता की चालीसा का पाठ करना सिर्फ़ एक धार्मिक क्रिया नहीं बल्कि एक आत्मा को शुद्ध करने वाला आध्यात्मिक अनुभव है। विन्ध्येश्वरी चालीसा 40 चौपाइयों का एक पवित्र ग्रंथ है जो माँ के गुण, शक्ति और कृपा का वर्णन करता है।

Vindhyeshwari-Chalisa-1

  • माँ विंध्यवासिनी को नवदुर्गा का प्रमुख रूप माना जाता है, और उनकी चालीसा उनको अनंत गुणों का ज्ञान देती है।
  • चालीसा पाठ भक्त के मन को शांत, पवित्र और एकाग्र बनाता है।
  • इसका पथ करने से माँ की शक्ति भक्त के जीवन में उतर जाती है और उसे हर कथाई से लड़ने का साहस मिलता है।
  • चालीसा भक्त और माँ के बीच एक आध्यात्मिक संबंध बनता है।

विन्ध्येश्वरी चालीसा पाठ के लाभ – Benefits of Reciting Vindhyeshwari Chalisa

  1. मन की शांति – चालीसा पाठ से मन के विचार दूर होते हैं और अंतर-आत्मा में शांति आती है।
  2. रोग और पीड़ा से मुक्ति – माँ विन्ध्येश्वरी अपने भक्तों को स्वास्थ और रक्षा देती हैं।
  3. धन और समृद्धि – माँ की कृपा से जीवन में धन, सुख और समृद्धि आती है।
  4. डर और समस्याएं दूर होती हैं – कोई भी व्यक्ति जो डर, व्यवसायी या व्यक्तिगत समस्याओं से जूझ रहा हो, विन्ध्येश्वरी चालीसा पाठ से राहत मिलती है।
  5. मनोकामना पूर्ण होती है – माँ उन भक्तों की सारी इच्छाएँ पूरी करती हैं जो विश्वास के साथ उनका स्मरण करते हैं।
  6. पारिवारिक सुख-शांति – नियमित चालीसा पाठ से घर के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-शांति बनी रहती है।

विशेष उत्सव में पाठ

  • नवरात्रि के समय चालीसा का पाठ करना सर्वश्रेष्ठ मन जाता है।
  • शादी, गृह प्रवेश या किसी नए काम के शुभ आरंभ पर इसका पाठ करने से माँ की कृपा बनी रहती है।

विन्ध्येश्वरी चालीसा पाठ करने की विधि – Proper Method to Recite Shri Vindhyeshwari Chalisa

श्री विन्ध्येश्वरी माता का चालीसा पाठ करने के लिए कुछ सरल और पवित्र विधि का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे भक्त को माँ की कृपा जल्दी मिलती है और भक्ति का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

1. पाठ का समय

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त (4-6 बजे के बीच) या शाम के समय पाठ करना सबसे शुभ माना जाता है।
  • नवरात्रि और सोमवार, शुक्रवार के दिन माँ के पाठ का विशेष महत्व है।

2. पथ से पहले की तयारी

  • स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
  • पूजा स्थल या घर के मंदिर को साफ करें।
  • माँ विन्ध्येश्वरी की मूर्ति या चित्र के सामने घी का दीपक व धूप जलाएं और फूल चढ़ाएं।

3. पाठ की विधि

  • माँ विंध्यवासिनी का स्मरण करके उन्हें नमस्कार करें।
  • एक शुद्ध आसन पर बैठ कर ध्यान लगायें।
  • श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा को श्रद्धा और धैर्य के साथ पढ़ें।
  • पाठ के बाद माँ को प्रसाद (नैवेद्य) समर्पित करके भक्तों में बांटें।
  • अंत में विंध्यवासिनी माँ की आरती उतारें और मन ही मन अपनी मनोकामना प्रार्थना करें।

4. पाठ के नियम

  • पाठ हमेशा स्पष्ट, धीरे और श्रद्धा के साथ करें।
  • गलती से भी पाठ को बीच में छोड़ना नहीं चाहिए।
  • पाठ के समय मन को शांत रखें।
  1. विशेष मान्यता

ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त 40 दिन तक श्रद्धा से श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ करता है, माँ उसकी सारी रुकावटें दूर करके उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता देती हैं।

नवरात्रि में विन्ध्येश्वरी चालीसा का महत्व – Vindhyeshwari Chalisa in Navratri

माँ दुर्गा और उनके नव रूप की उपासना का सबसे बड़ा पर्व नवरात्रि है। इस समय माँ विन्ध्येश्वरी की पूजा और उनकी चालीसा का पाठ अति शुभ माना जाता है।

1. शक्ति की अनुभूति
नवरात्रि के 9 दिन माँ की शक्तियाँ पृथ्वी पर विशेष रूप से सक्रिय होती हैं। जो भक्त सुबह शाम विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ करता है, वह माँ का आशीर्वाद प्राप्त करता है और वह माँ की शक्ति को अपने जीवन में महसूस करता है।

2. मनोकामना पूर्ण
कहा जाता है कि नवरात्रि के दौरान जो भी भक्त श्रद्धा के साथ चालीसा पाठ करके माँ से अपनी इच्छा माँगता है, माँ उसकी मनोकामना जरूर पूरी करती हैं।

3. पाप और दोष से मुक्ति
पवित्र समय में चालीसा का पाठ करने से पापों का नाश होता है, गृह दोष कम होते हैं और व्यक्ति के जीवन में नए अवसर खुलते हैं।

4. सुख-समृद्धि का वरदान
नवरात्रि में माँ विंध्यवासिनी की उपासना और चालीसा पाठ से परिवार में सुख, समृद्धि और शांति स्थापित होती है। घर में एक पवित्र और साकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है।

5. विजय और रक्षा
जैसा की माँ ने असुरों का संघार किया था, वैसे ही नवरात्रि में उनकी चालीसा का पाठ भक्तों को दुश्मनों और रुकावतों पर विजय दिलाता है। साथ ही माँ अपने भक्तों को बुरी शक्तियों और दुर्घटना से रक्षा देती हैं।

विन्ध्याचल धाम: शक्ति उपासना का प्रमुख केन्द्र – Vindhyachal Dham – The Sacred Power Center

विंध्याचल धाम उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में स्थित है और इस भारत के सबसे बड़े और प्रसिद्ध शक्तिपीठ में से एक माना जाता है। ये स्थान माँ विन्ध्येश्वरी (विंध्यवासिनी देवी) को समर्पित है।

1. ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

  • पौराणिक कथा के अनुरूप, माँ दुर्गा ने यहीं पर महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ और दुष्ट असुरों का संघार किया था।
  • माँ ने असुरों से देवताओं को मुक्त करा कर इस स्थान को अपना निवास स्थान बनाया, इसलिए इसे विंध्यवासिनी देवी का धाम कहा जाता है।
  • ये धाम सती के शक्तिपीठ से भी जुड़ा है, यहाँ उनके बायें पैर का अंगूठा गिरा था।

2. शक्ति उपासना का मुख्य केंद्र

  • विंध्याचल धाम में माँ का मंदिर एक आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र माना जाता है।
  • यहां भक्त माँ विन्ध्येश्वरी के अलावा माँ अष्टभुजा और माँ काली खोह का भी दर्शन करते हैं।
  • तीन स्थानों को मिला कर बनती है त्रिकोण परिक्रमा, जो भक्तों के लिए अति शुभ मानी जाती है।

3. नवरात्रि का विशेष महत्तव

  • हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरन यहां लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
  • नवरात्रि में विंध्याचल धाम का महौल भक्ति और शक्ति उपासना से भरा होता है।
  • ऐसा कहा जाता है कि नवरात्रि में यहां आकर माँ का दर्शन करने के लिए जन्म-जन्मान्तर के पाप खत्म हो जाते हैं और भक्त को माँ की कृपा जरूर मिलती है।

4. आज का विंध्याचल धाम

  • आज के समय में विंध्याचल धाम सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि एक आस्था का केंद्र बन चुका है।
  • यहां हर दिन हजारों भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए आते हैं।
  • ये धाम भारत में शक्ति उपासना के सबसे बड़े केंद्रो में से एक माना जाता है।

रोचक तथ्य: श्री विन्ध्येश्वरी माता से जुड़े तथ्य और मान्यताएँ – Legends and Beliefs about Vindhyeshwari Mata

कहा जाता है की विध्येन्श्वरी माता श्री कृष्ण की बहन थी उनका जन्म भी उसी रात को था श्री कृष्ण के साथ देवी विन्ध्येश्वरी श्री विन्ध्येश्वरी माता के बारे में कई पौराणिक कथाएं, रोचक तथ्य और लोक मान्यताएं हैं जो माँ के दिव्य रूप और शक्ति को दर्शन देती हैं।

1. योगमाया का रूप

माँ विन्ध्येश्वरी को योगमाया का ही रूप माना जाता है। कथा के अनुसर, श्री कृष्ण के जन्म के समय वासुदेव जी ने कृष्ण को मथुरा से गोकुल ले  गए | वह वृन्दावन में पैदा हुई योगमाया(विन्ध्येश्वरी), वासुदेव ने कृष्ण को यशोदा मैय्या के पास रखा और योगमाया को ले आयें | कंस ये सब देखके आश्चर्य-चकित रह गया की उसका वद्ध तो देवकी की आठवीं संतान अर्थात एक पुत्र करने वाला था तो यह एक पुत्री कैसे जन्मी|

कंस ने जब योगमाया को जमीन पर पटकने की कोशिश की, तो वो तुरंत अपना दिव्य रूप धारण करके आकाश में जाकर बोली: “हे दुष्ट कंस! तेरा विनाश करने वाला तो कहीं और जन्म ले चूका है।” योगमाया ही आगे चलकर विंध्य पर्वत पर स्थापित हुई और माँ विन्ध्येश्वरी के रूप में प्रसिद्ध हुई।

2. शक्तिपीठ से संबंध

विंध्याचल धाम को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि यहां माँ सती का बायाँ पैर का अंगूठा गिरा था, इसी कारण से यह स्थान पवित्र और शक्ति का प्रमुख केंद्र बना।

3. त्रिकोण परिक्रमा की महिमा

विंध्याचल धाम की सबसे बड़ी पहचान है त्रिकोण परिक्रमा, भक्त माँ विंध्यवासिनी, माँ अष्टभुजा और माँ काली खोह के दर्शन करते हैं।

लोक मान्यता है कि जो भक्त परिक्रमा को श्रद्धा से पूरा करता है, उसकी सारी मनोकामना पूरी होती है।

4. माँ का स्थान विंध्य पर्वत पर

माँ का मंदिर विंध्य पर्वत के बीच स्थित है, इसी कारण से उन्हें विन्ध्येश्वरी या विंध्य की रानी कहा जाता है।

5. पाप निवारण की मान्यता

कहा जाता है कि विंध्याचल आकर माँ का दर्शन करने के लिए जन्म-जन्माँतर के पाप कट जाते हैं और भक्त नया जीवन पाते हैं।

6. विशेष उत्सव

नवरात्रि के समय यहां लाखों भक्त इकठ्ठा होते हैं। ये समय विंध्याचल धाम को एक महा-यात्रा और उत्सव में बदल देता है।

निष्कर्ष

श्री विन्ध्येश्वरी माता, जो योगमाया के रूप में पृथ्वी पर स्थापित हुई, भक्तों के लिए आस्था और शक्ति का प्रतीक हैं। माँ का धाम विंध्याचल सिर्फ एक मंदिर नहीं बल्कि एक अदभुत शक्तिपीठ है जहां आने से भक्त अपने अंदर आध्यात्मिक ऊर्जा, शांति और साहस का अनुभव करता है।

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ और माँ का स्मरण करने से मन की शुद्धि, पारिवारिक सुख-शांति, समृद्धि और भय से रक्षा होती है। नवरात्रि के पवित्र अवसर पर माँ का दर्शन और चालीसा पाठ और भी शुभ फलदायी मन जाता है। अंत में, माँ विन्ध्येश्वरी के प्रति विश्वास रखना और उनका स्मरण करना हर भक्त के जीवन में एक नई रोशनी और नई शक्ति लेकर आता है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

श्री विन्ध्येश्वरी माता का मुख्य मंदिर कहाँ स्थित है?
श्री विन्ध्येश्वरी माता का मंदिर उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में, विंध्याचल पर्वत के बीच स्थित है।
माँ विन्ध्येश्वरी को योगमाया क्यों कहा जाता है? 
पौराणिक कथा के अनुसर, श्री कृष्ण के जन्म के समय योगमाया को कंस के सामने रखा गया था। माँ ने दिव्य रूप धारण करके कंस को बताया कि कृष्ण कहीं और जन्म ले चुके हैं। हाँ योगमाया ही आगे चल कर माँ विन्ध्येश्वरी के रूप में पूजी गई।
विंध्याचल धाम को शक्तिपीठ क्यों माना जाता है? 
कहा जाता है कि यहां माँ सती का बायें पैर का अंगूठा गिरा था, इसी कारण से यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
विन्ध्येश्वरी चालीसा का पाठ कब करना सबसे शुभ होता है?
सुबह ब्रह्म मुहूर्त और शाम के समय, विशेषर नवरात्रि के दिनों में चालीसा पाठ सबसे शुभ मन जाता है।
माँ विन्ध्येश्वरी की त्रिकोण परिक्रमा क्या होती है? 
इस भक्त माँ विंध्यवासिनी, माँ अष्टभुजा और माँ काली खोह के दर्शन करते हैं। मान्यता है कि इस परिक्रमा से सारी मनोकामना पूरी होती है।
माँ विन्ध्येश्वरी का पथ और दर्शन करने से क्या लाभ होता है?
भक्त को मन की शांति, रोग से मुक्ति, धन-समृद्धि, पारिवारिक सुख और दुश्मनों पर विजय प्राप्त होती है।
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