Som Pradosh Vrat Katha in Hindi: सोम प्रदोष व्रत कथा

सोम प्रदोष व्रत कथा: सोम प्रदोष व्रत, जो एक प्रमुख व्रत है समर्पित भगवान शिव को, हर महीने की त्रयोदशी तिथि पर किया जाता है। जब यह तिथि सोमवार के दिन होती है, तो इसको “सोम प्रदोष व्रत” कहा जाता है।

इस व्रत को शिव भक्तों के लिए बहुत ही शुभ और फलदायक माना जाता है, क्योंकि सोमवार स्वयं भगवान शिव का दिन होता है। इस व्रत को करके भगवान शिव जी की विशेष कृपा भक्तों को मिलती है।

ऐसा माना जाता है कि जो मनुष्य सोम प्रदोष व्रत साधना और अनुष्ठानों से करता है, उसका जीवन शांति, समृद्धि, और स्वास्थ्य बना रहता है। इस व्रत से न सांसारिक दर्द प्रभावित होते हैं, न ही आध्यात्मिक उन्नति का द्वार बंद होता है।

शिव पुराण और अन्य धर्म ग्रंथों में सोम प्रदोष व्रत का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है, और इसमें यह बताया गया है कि शिव जी को यह व्रत अत्यंत प्रिय है।

इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की संयुक्त पूजा की जाती है, विशेष रूप से सूर्यास्त के समय “प्रदोष काल” में। यह व्रत व्यक्ति को संयम, भक्ति और आत्म-शुद्धि की दिशा में प्रेरित करता है।

सोम प्रदोष व्रत क्या होता है?

सोम प्रदोष व्रत अर्थ है – शिव जी का विशेष सोमवार का व्रत। प्रत्येक महीने की त्रयोदशी तिथि प्रदोष व्रत होती है, और जब ये सोमवार को पड़ते, उन्हें “सोम प्रदोष” कहते हैं।

इस दिन लोग सुबह नहा-धोकर साफ कपड़े पहनते हैं, फिर दिनभर उपवास रखते हैं – यानी फलाहार या बिल्कुल निराहार। शिव जी की पूजा खासकर शाम के समय “प्रदोष काल” में की जाती है, जो सूर्यास्त के आसपास का समय होता है।

इस दिन शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, दूध, शहद आदि चढ़ाए जाते हैं। “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से ये व्रत करता है, उसकी हर इच्छा शिव जी पूरे करते हैं – फिर चाहे वो सेहत हो, संतान सुख हो या धन-समृद्धि। और हां, ये व्रत मन को भी बड़ा शांत करता है।

सोम प्रदोष व्रत पौराणिक कथा

एक समय की बात है एक छोटे से गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था उसका जीवन साधारण मनुष्य जैसा तो था, लेकिन बहुत ज्यादा परेशानियों से भरा हुआ था। पैसा कम था, सुख नहीं था और सबसे बड़ी बात उनकी कोई संतान नहीं थी।

ब्राह्मण और उसकी पत्नी शिव जी की बहुत बड़े भक्त थे। वह हर दिन शिव जी के मंदिर जाते थे उन पर जल चढाते थे और उनसे सच्चे मन से प्रार्थना करते थे।

एक दिन उन्हें किसी से सुना जाए “अगर प्रदोष काल में व्रत रखा जाए और मन से शिव जी का ध्यान किया जाए, तो हर दुख दूर होता है।” फिर क्या था, दोनों ने मिलकर सोम प्रदोष व्रत रखना शुरू कर दिया – जिसमें त्रयोदशी तिथि को, वह पूरा दिन व्रत रखते, शाम के समय शिव-पार्वती की पूजा करते, और मंत्र जाप करते।

कुछ समय बाद उनकी स्तिथि बदली, उनके आसपास के लोगो का व्यवहार भी बदला। फिर एक रात ब्राह्मण ने सपने में शिव जी का दर्शन किया। शिव जी ने कहा, “तुम दोनों ने श्रद्धा से सोम प्रदोष व्रत रखा, मैं तुमसे प्रसन्न हूं। तुम्हें संतान प्राप्त होगी और तुम्हारा जीवन सुखमय होगा।”

थोड़े ही समय में ब्राह्मण की पत्नी गर्भावती हुई, और कुछ महिनो बाद एक प्यारा सा बेटा पैदा हुआ। बचपन से ही वो लड़का बहुत समझदार था, विनम्र और भक्ति भाव से भरा हुआ था।

आगे जाकर उसने भी शिव भक्ति को अपना जीवन बना लिया। ब्राह्मण का परिवार खुशहाल हो गया, और उन्हें जीवन भर प्रदोष व्रत रखना बंद नहीं किया गया।

कहा जाता है कि जब भी कोई भक्त सच्चे मन से सोम प्रदोष व्रत रखता है, तो शिव जी उसके जीवन के सारे दुख दूर कर देते हैं। ये व्रत सिर्फ एक पूजा नहीं होती, बाल्की एक भक्ति और भरोसे का साथ होता है – जहां इंसान अपने मन से प्रार्थना करता है, और शिव-पार्वती उसकी हर बात सुनते हैं।

इसलिए आज भी कई लोग, चाहे उनके जीवन में कितनी भी परेशानी हो, सोम प्रदोष का व्रत रखते हैं। इस व्रत के लिए उन्हें ना सिर्फ भगवान का आशीर्वाद मिलता है, अंदर से भी एक सुकून और नया उत्साह मिलता है।

सोम प्रदोष व्रत का महत्व

सोम प्रदोष व्रत एक ऐसा प्रदोष व्रत है जो त्रयोदशी तिथि को पड़ता है, जब यह व्रत सोमवार के दिन आता है तो इसको सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और पार्वती माता को समर्पित होता है।

इस दिन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद का समय) शिव जी की पूजा अभिषेक और व्रत करने का बहुत महत्व होता है। लोग व्रत को अपने जीवन के लिए टेंशन, पाप और परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए रखते हैं।

सोम प्रदोष व्रत कथा

ये व्रत इंसान के जीवन में मानसिक शांति, खुशी, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा लाता है। जो लोग व्रत को श्रद्धा से रखते हैं, उनकी मन्नकामनाएं पूरी होती हैं।

आध्यात्मिक महत्व

  • क्या व्रत से भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष कृपा मिलती है।
  • प्रदोष काल में पूजा करने से पिछले पापों और नकारात्मक कर्मों का प्रभाव कम होता है।
  • ये व्रत मन की शांति, धैर्य और आत्मशुद्धि देता है।
  • नियमित सोम प्रदोष व्रत रखने से जीवन की समस्याएं और चुनौतियां दूर हो जाती हैं।
  • अविवाहित लड़कियों के लिए व्रत से अच्छा जीवन साथी पाने की प्रार्थना करती हैं।
  • शादीशुदा जोड़ों के लिए व्रत से रिश्तों में सुख और समझदारी बढ़ती है।
  • भगवान शिव का अभिषेक करने से मुक्ति और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रकट होता है।
  • ये व्रत भक्ति और आस्था को मजबूत बनाता है – भक्ति में एक गहरा जुड़ाव महसूस होता है।

वैज्ञानिक महत्व

  • सोमवार का दिन चाँद से जुड़ा होता है, जो मन और भावनाओं को नियंत्रित करता है।
  • व्रत रखने से शरीर को आराम मिलता है और पाचन तंत्र डिटॉक्सीफाई होता है।
  • प्रदोष काल में पूजा, दीया जलाना और मंत्र जप से सकारात्मक मस्तिष्क तरंगें बनती हैं।
  • ये मस्तिष्क तरंगें तनाव और चिंता को कम करती हैं और मूड बेहतर करती हैं।
  • शाम के ध्यान और उपवास से मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक स्थिरता आती है।
  • उपवास से चयापचय संतुलन होता है और ऊर्जा का स्तर बेहतर होता है।
  • प्रदोष काल का समय स्वाभाविक रूप से शांत होता है, जो ध्यान और फोकस के लिए सबसे अच्छा होता है।
  • बेल पत्र (एक ही दांडी में 3 पत्ते), धूप और प्राकृतिक तत्वों का उपयोग पर्यावरण को आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रूप से भी शुद्ध करता है।

सोम प्रदोष व्रत की पूजा सामग्री

भगवान शिव की पूजा जितनी सरल है, उतनी ही प्रभावशाली भी। लेकिन जब व्रत खास हो — जैसे सोम प्रदोष व्रत, तो उसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री भी खास होनी चाहिए।

हर एक चीज़ का अपना एक महत्व होता है — कोई भगवान शिव को प्रिय है, तो कोई पूजा के नियमों का हिस्सा है। सही सामग्री और सच्ची भावना से की गई पूजा, जीवन में सुख, शांति और सकारात्मक ऊर्जा लाती है।

पूजा सामग्री की पूरी सूची

1. शिवलिंग या शिव जी की तस्वीर – अगर घर में शिवलिंग है तो बहुत अच्छा, नहीं तो शिव जी की तस्वीर भी चलेगी। पूजा का केंद्र बिंदु यही रहेगा।

2. गंगाजल और साफ पानी – अभिषेक और मूर्ति को शुद्ध करने के लिए सबसे पहले गंगाजल से स्नान कराना चाहिए।

3. पंचामृत – दूध, दही, शहद, घी और मिश्री — इन पाँचों को मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक किया जाता है। यह भगवान को शीतलता देने वाला होता है।

4. बेलपत्र (बेल के पत्ते) – ये शिव जी को सबसे प्रिय माने जाते हैं। तीन पत्तों वाला बेलपत्र शुद्ध होकर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है।

5. धूप, दीपक और कपूर – वातावरण को शुद्ध करने, आरती और शिव जी को प्रसन्न करने के लिए ज़रूरी हैं।

6. फूल (सफेद या नीले) – शिव जी को सफेद या नीले फूल विशेष प्रिय होते हैं। ताजे और सुगंधित फूल उपयोग करें।

7. धतूरा और अखरोट (या भांग) – ये भी शिव जी को चढ़ाई जाने वाली विशिष्ट वस्तुएं हैं। विशेष अवसरों पर इनका उपयोग होता है।

8. रोली, चावल और हल्दी – तिलक लगाने और पूजा की पारंपरिक विधि में इनका स्थान होता है।

9. फल और मिठाई (या मिश्री) – भोग के रूप में फल, मिश्री या कोई मीठा व्यंजन चढ़ाया जाता है।

10. नारियल और कलश – कलश स्थापना करते समय, ऊपर नारियल रखकर शिव जी की ऊर्जा का आवाहन किया जाता है।

11. सूखे मेवे (काजू, बादाम, किशमिश आदि) – भोग में शामिल करने के लिए, और ज़रूरतमंदों को दान देने के लिए भी।

12. रुद्राक्ष माला – “ॐ नमः शिवाय” का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला अत्यंत शुभ मानी जाती है।

13. पूजा थाली, लोटा और कलछी (चम्मच) – सभी सामग्री सहेजकर रखने के लिए।

14. व्रत कथा पुस्तिका – सोम प्रदोष की कथा ज़रूर पढ़नी या सुननी चाहिए — तभी व्रत पूर्ण माना जाता है।

सोम प्रदोष व्रत की पूजा विधि

सोम प्रदोष व्रत केवल उपवास नहीं होता – ये एक आध्यात्मिक साधना होती है। इसमें शरीर, मन और आत्मा — तीनों की शुद्धि होती है।
इस व्रत की पूजा का सबसे खास समय होता है।

प्रदोष काल – यानी सूर्यास्त के बाद का लगभग डेढ़ घंटा। अगर सही समय पर और पूरे मन से पूजा की जाए, तो भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

1. सुबह जल्दी उठें (ब्रह्म मुहूर्त में)

स्नान करके साफ और हल्के कपड़े पहनें। मन को शांत और श्रद्धा से भर लें।

2. घर के मंदिर की सफाई करें

पूजा स्थान को अच्छे से धो-पोंछकर साफ करें। शिवलिंग या फोटो को गंगाजल से शुद्ध करें।

3. व्रत का संकल्प लें

शिव जी के सामने बैठकर हाथ में जल लेकर संकल्प लें — “मैं आज श्रद्धा से सोम प्रदोष व्रत रखूंगा।”

4. पूरे दिन उपवास करें

इस दिन फल, दूध, पानी या व्रत का भोजन (सेंधा नमक वाला) ही लें। अगर हो सके तो निर्जल व्रत भी रखा जा सकता है।

5. प्रदोष काल की प्रतीक्षा करें

सूर्यास्त के बाद डेढ़ घंटे का समय ही पूजा के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।

6. शिव जी का अभिषेक करें

सबसे पहले गंगाजल से, फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, मिश्री) से अभिषेक करें। अंत में फिर से जल से स्नान कराएं।

7. पूजा सामग्री अर्पित करें

बेलपत्र, फूल, धूप, दीप, धतूरा, भांग, कपूर आदि भगवान को अर्पण करें।

8. मंत्र जाप करें

“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें। रुद्राक्ष की माला हो तो और भी शुभ।

9. व्रत कथा पढ़ें या सुनें

सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा जरूर पढ़ें या किसी से सुनें। यह पूजा का आवश्यक हिस्सा है।

10. आरती करें और मनोकामना बताएं

शिव जी की आरती करें, और अपने मन की बात उनसे कहें — जैसे दोस्त से बात करते हैं।

11. व्रत का समापन (अगले दिन)

अगले दिन प्रातः स्नान करके कुछ फल-फूल दान करें, गाय या ज़रूरतमंद को अन्न दें और फिर व्रत खोलें।

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सोम प्रदोष व्रत कथा के लाभ

सोम प्रदोष व्रत सिर्फ एक पूजा या उपवास नहीं है, ये एक आध्यात्मिक उपचार जैसा है। जो भी व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा, नियम और सच्चे मन से करता है, उसके जीवन में धीरे-धीरे सकारात्मक बदलाव आना शुरू हो जाते हैं।

नीचे बताए गए हैं सोम प्रदोष व्रत के कुछ मुख्य लाभ, जो हर भक्त को महसूस होते हैं –

1. रोगों से मुक्ति – इस व्रत को करने से मानसिक और शारीरिक बीमारियों से राहत मिलती है। शिव जी का अभिषेक शांति और ऊर्जा देता है।

2. मन की शुद्धि और शांति – इस व्रत के दौरान उपवास और पूजा से मन शांत होता है, और अंदर से पॉजिटिव एनर्जी आती है।

3. पारिवारिक सुख-संतुलन – घर में चल रही कलह, अशांति या रिश्तों की दूरियां धीरे-धीरे मिटती हैं।

4. आर्थिक परेशानी से राहत – जो लोग धन या करियर की दिक्कतों से जूझ रहे हैं, उन्हें इस व्रत से धीरे-धीरे सुधार दिखने लगता है।

5. विवाह और संतान की इच्छा पूरी होना – जिन्हें विवाह में रुकावटें आ रही हों या संतान की चाह हो उनके लिए ये व्रत बहुत फलदायक माना गया है।

6. पापों का शमन – पूर्व जन्म या वर्तमान जीवन के पापों से मुक्ति मिलने का माध्यम है ये व्रत।

7. इच्छित फल की प्राप्ति -जो भी सच्चे मन से शिव जी से कुछ माँगता है, सोम प्रदोष के दिन उसकी मनोकामना ज़रूर पूरी होती है।

सोमवार और त्रयोदशी — दोनों ही शिव जी को अत्यंत प्रिय होते हैं। जब ये दोनों एक दिन में आ जाएं, तो उस दिन व्रत रखने का फल हजारों व्रतों के बराबर माना गया है।

निष्कर्ष

सोम प्रदोष व्रत कथा सिर्फ मान्यताओं का कथन नहीं है, यह हमारी मन की इच्छाओं की प्राप्ति और शिव जी की पुरे मन से सेवा भाव का प्रतीक हैं। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को पड़ता हैं।

सोम प्रदोष व्रत सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं है यह एक आस्था, श्रद्धा, और आत्मिक शुद्धि का रास्ता है। जो भी व्यक्ति पूरे मन, नियम और भक्ति के साथ इस व्रत को करता है, उसे भगवान शिव और माता पार्वती का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

चाहे जीवन में कितनी भी उलझनें क्यों न हों — यह व्रत उन सभी को धीरे-धीरे सुलझाने में मदद करता है। मन को शांति मिलती है, शरीर को ऊर्जा, और आत्मा को एक नई दिशा। इस व्रत में न तो दिखावा चाहिए, न बड़ा आयोजन बस सच्चा मन और श्रद्धा चाहिए।

शिव जी उतना ही देते हैं, जितना हम विश्वास और भक्ति से माँगते हैं। इसलिए अगर आप जीवन में शांति, सुख, सफलता और आंतरिक स्थिरता चाहते हैं, तो सोम प्रदोष व्रत ज़रूर अपनाइए क्योंकि शिव जी की कृपा एक बार मिल गई, तो फिर जीवन में कोई चीज़ अधूरी नहीं रहती।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

सोम प्रदोष व्रत किस दिन रखा जाता है?
जब त्रयोदशी तिथि सोमवार के दिन आती है, तब सोम प्रदोष व्रत रखा जाता है। यह दिन भगवान शिव की पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है।
क्या महिलाएं भी यह व्रत रख सकती हैं?
हां, स्त्रियाँ भी सोम प्रदोष व्रत रख सकती हैं। विशेषकर जिन महिलाओं को संतान सुख या पारिवारिक सुख की इच्छा होती है, उनके लिए यह व्रत बेहद फलदायक होता है।
उपवास में क्या खा सकते हैं?
उपवास में फल, दूध, सूखे मेवे, और व्रत का खाना (जैसे आलू, साबूदाना, सेंधा नमक आदि) खा सकते हैं। कुछ लोग निर्जल व्रत भी करते हैं, लेकिन वो अपनी क्षमता के अनुसार रखें।
अगर प्रदोष काल में पूजा न हो पाए तो क्या करें?
कोशिश करें कि पूजा सूर्यास्त के बाद डेढ़ घंटे के भीतर हो। लेकिन अगर किसी कारण नहीं हो पाती, तो श्रद्धा से रात में भी कर सकते हैं। भगवान शिव भाव के ऋणी है, समय के नहीं।
क्या व्रत की पूजा के लिए पण्डित जी ज़रूरी है?
नहीं यह अनिवार्य नही है, आप खुद भी घर पर साधारण तरीके से शिव जी की पूजा कर सकते है, चाहें तो पंडित बुलाकर विशेष पूजा भी करवा सकते हैं।
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